देवकली में चल रहे मानस सम्मेलन के चौथे दिन प्रकृति व ईश्वरीय कृपा पर दिया प्रवचन
देवकली। स्थानीय ब्रह्म स्थल परिसर में चल रहे मानस सम्मेलन के तीसरे व चौथे दिन झांसी से आये आचार्य विनोद शास्त्री प्रकृति व ईश्वरीय कृपा पर प्रवचन दिया। कहा कि ईश्वर न आम में है, न खास में, न आकाश में है न तो पाताल में। यदि हममें किसी के लिए प्रेम है तो वो पास में है और भाव से पुकारने पर सर्वत्र विराजमान है। कहा कि पहाड़, पेड़, नदियां हर चीज को ईश्वर ने बनाया है। कहा कि रामचरितमानस में तीन लोगों को सन्त नहीं बल्कि सन्ता की उपाधि मिली है। उनमें नारद, हनुमान व जनकपुर के वासी हैं। कहा कि जब-जब इस धराधाम पर आसुरी प्रवृत्ति के लोगों का अत्याचार बढ़ा है, परमात्मा ने किसी न किसी रुप में भक्तों की रक्षा करने के लिए अवतार लिया है। कहा कि राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ के पास जाकर अपनी व्यथा का वर्णन किया तो गुरु ने ऋंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया। मिले प्रसाद को रानियों मे बांटने को दिया। जिसके बाद राजा दशरथ ने प्रसाद का आधा भाग अपनी प्रिय रानी कौशिल्या को तथा बाकी के आधे में दो हिस्सा करके सुमित्रा व कैकेई को दे दिया। इधर सुमित्रा का प्रसाद पक्षी लेकर उड़ गया। जिससे सुमित्रा उदास हो गईं। जिसके बाद कौशिल्या व कैकई ने अपने प्रसाद से आधा-आधा भाग सुमित्रा को दिया तो सुमित्रा को लक्ष्मण व भरत नाम के दो पुत्र हुए। इसके पश्चात शेष कथा सुनाई। इस मौके पर नरेन्द्र मौर्य, अर्जुन पाण्डेय, रामकुंवर शर्मा, दयाराम गुप्ता, केपी गुप्ता आदि रहे। अध्यक्षता प्रभुनाथ पाण्डेय व संचालन संजय श्रीवास्तव ने किया।