सूबे में बढ़ा आक्रमणकारी टिड्डियों का खतरा, बचाव के लिए ये उपाय अपनाएं किसान, जानें टिड्डियों के हमले का विस्तृत तरीका -
लखनऊ। कई प्रांतों में टिड्डी दल के आक्रमण के बाद जनपद में भी आक्रमण की संभावना बनी हुई है। जिसके बाद प्रदेश मुख्यालय समेत कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को इनके आक्रमण से पूर्व तैयार रहने के लिए जागरूक करना शुरू कर दिया है। देश के राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश के अलावा झांसी, ललितपुर में टिड्डी दल का आक्रमण हो चुका है। आगरा में भी राजस्थान की ओर से आक्रमण की संभावना बनी हुई है। इस बाबत कृषि रक्षा अधिकारी ने कहा कि टिड्डी दल एक साथ लाखों की संख्या में सफर करते है। इनका आक्रमण जहां होता है, वहां का पूरा क्षेत्र वीरान हो जाता है। यह नीम, आक, जामुन, शीशम को छोड़कर सभी फसलों व पेड़ पौधो की पत्तियों को खा जाते हैं। टिड्डियां एक दिन में 100-150 किमी दूरी तय कर लेती है। इनका आगे बढ़ना हवा की गति व दिशा पर निर्भर करता है। टिड्डी दल प्रायः सूर्यास्त के समय किसी न किसी पेड़ पौधो पर सूर्यादय होने तक आश्रय लेते हैं और इस अवधि में सभी फसलों को नष्ट भी कर देती है। प्रकोप की सूचना प्रधान व लेखपाल, कृषि विभाग के प्राविधिक सहायकों के माध्यम से कृषि विभाग व जिला प्रशासन तक तत्काल पहुंचाने की अपील की है। किसानों को जागरूक करते हुए कहा कि टिड्डी दल दिखाई देते ही किसान उन्हें फसलों पर बैठने से रोकने के लिए थाली, ढोल, नगाड़े, घंटियां, पटाखों के अलावा डीजे आदि की तेज आवाज करके भगा सकते है। इसके अलावा तेज रोशनी का प्रयोग करके भी टिड्डियों को एकजुट करके खत्म किया जा सकता है। प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी 1200 मिली, लेम्डा साइहेलोथ्रीन पांच प्रतिशत ईसी 400 मिली या बेन्थियोंकार्ब 80 प्रतिशत 125 ग्राम, 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या फेनवेलरेट 0.4 प्रतिशत या मैलाथियान पांच प्रतिशत धूल 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह पत्तियों पर ओस देखकर छिड़काव करने की अपील की है। गौरतलब है कि दो महीने पहले जब टिड्डियों ने हमला किया था, तब गुजरात और राजस्थान में 1.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खड़ी तेल बीजों, जीरे और गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचा था। ताज़ा हमले को लेकर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर टिड्डियों पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो 8 हज़ार करोड़ रुपए तक की फसल तबाह हो सकती है। लेकिन, भारत में इस साल हो चुके और होने वाले कुल नुकसान के बारे में अभी कोई पुख्ता अंदाज़ा तक नहीं है। गौरतलब है कि ये टिड्डी दल ईरान के रास्ते पाकिस्तान से होते हुए भारत पहुंचे हैं। पहले पंजाब, राजस्थान में फसलों को नुकसान पहुंचाने के बाद हमलावर टिड्डियों के आगरा पहुंचने की आशंका थी लेकिन ये झांसी पहुंचे। असल में यह सिलसिला पिछले साल से चल रहा है और इसने इस साल के शुरुआती महीनों में अफ्रीका में खास तौर से केन्या और इथोपिया में कहर ढाया था। इसके बाद अरबी देशों के रास्ते से टिड्डी दलों ने यहां तक का सफर किया। टिड्डियों का ये प्रकोप ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते मौसम में आए बदलाव के कारण माना जा रहा है। अनुमान है कि टिड्डी दलों की आबादी और हमले बढ़ रहे हैं। एक मादा टिड्डी अपने जीवन में कम से कम तीन बार अंडे देती है और एक बार में 95 से 158 अंडे तक दे सकती है। एक वर्ग मीटर में टिड्डियों के करीब 1000 अंडे हो सकते हैं। एक टिड्डी का जीवन सामान्यतया तीन से पांच महीने का होता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन यानी एफएओ के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर में फैले दल में करीब 4 करोड़ टिड्डियां होती हैं, जो एक दिन में इतने वज़न का भोजन कर लेती हैं, जितने में 35 हज़ार लोगों का पेट भर सकता है। अगर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2.3 किग्रा भोजन का औसत लिया जाए। आसमान में उड़ते इन टिड्डी दलों में दस अरब टिड्डे तक हो सकते हैं। ये झुंड एक दिन में 13 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से करीब 200 किलोमीटर तक का रास्ता नाप सकते हैं। टिड्डियां हजारों-लाखों के झुण्ड में आकर पेड़ों, पौधों या फसलों के पत्ते, फूल, फल, बीज, छाल और फुनगियाँ सभी खा जाते हैं। ये इतनी संख्या में पेड़ों पर बैठते हैं कि उनके भार से पेड़ टूट तक सकता है। एक टिड्डा अपने वज़न के बराबर भोजन चट करता है, यानी कम से कम दो ग्राम।