भीमापार में 25 को नहीं बल्कि 26 मार्च को मनी कपड़ाफाड़ होली, सैकड़ों सालों पुरानी परंपरा तोड़ने पर घटी थीं घटनाएं
भीमापार। रंगो का पर्व होली पूरे क्षेत्र में जहां 25 मार्च को मनाई गई, वहीं हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भीमापार में एक दिन बाद 26 मार्च यानी आज होली मनाई गई। इस दौरान सुबह से ही होली की धूम रही। सड़कों और होलियारों ने जमकर उधम मचाया और गुजरने वालों को रंग से सराबोर कर दिया। वहीं आपस में सभी ने कपड़ाफाड़ होली भी खेली। कई जगह पर एक दूसरे पर लोगो ने कीचड़ भी बरसाए। जगह-जगह लोगों ने डीजे लगाकर गाना बजाना शुरू किया था, लेकिन पुलिसकर्मियों ने आदर्श आचार संहिता व रमजान के चलते डीजे को बन्द करवा दिया। इस दौरान बाजार के दोनों तरफ पुलिसकर्मियों व दो प्लाटून पीएसी तैनात रही। उनकी सुरक्षा में होली का पर्व मनाया गया। राहगीरों को आने-जाने में दिक्कत ना हो, इसके लिए पुलिस लगातार जुटी रही। पूर्व में उधर से गुजरने वाले राहगीरों संग होलियारे अभद्रता करते थे, जिसके बाद से ही अब हर वर्ष अधिक संख्या में पुलिसकर्मी तैनात होकर अपनी मौजूदगी में त्योहार को सकुशल सम्पन्न कराते हैं। चौकी इंचार्ज सन्तोष यादव भी मौके पर मौजूद रहकर सुरक्षा देख रहे थे। मंगलवार को युवाओं ने भीमापार में लोकगीत के साथ ही कपड़ा फाड़, कीचड़, इंजन से निकले मोबिल, नाली की गंदगी आदि एक दूसरे पर फेंककर होली मनाई। बाजार निवासी साहब यादव, पिन्टू पटवा, सोहनलाल, लालपरीखा, सोनू, मोनू, बजरंग, लालजी, पन्ना यादव आदि ने एक दूसरे के साथ होली का जश्न मनाया। बता दें कि भीमापार में बासी होली मनाने के पीछे 2 किवदंतियों को बताया जाता है। किवदंतियों के अनुसार, भीमापार में सैकड़ों साल पहले सिर्फ नृत्यांगनाएं रहती थीं। होली वाले दिन वो सभी नृत्यांगनायें जमींदारों, सेठ-साहूकारों के घर व अन्य गांवों में जाकर नाच-गाकर मनोरंजन करती थी। इसके अगले दिन अपनी होली मनाती थी। वहीं दूसरी किवदंती के अनुसार, प्राचीन काल मे ही भीमापार में एक सिद्ध संत रहा करते थे। होली वाले दिन किसी ने उनके ऊपर रंग डाल दिया था, जिस पर क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दे दिया था कि यहां कोई होली वाले दिन अगर रंग खेलेगा तो पूरे गांव के साथ अनिष्ट। तभी से यहां होली एक दिन बाद मनाई जाती है। सैकड़ों सालों से यही परंपरा चल रही है और लोग सख्ती से इसका पालन भी कर रहे हैं। काफी पहले लोगों ने इस परंपरा को झूठा मानकर तोड़ने का भी प्रयास किया था तो गांव में कई अनहोनियाँ घटित हुईं तो फिर सभी इस परंपरा को मानने लगे। होली वाले दिन यहां से लोग आराम से गुजर जाते हैं लेकिन होली के अगले दिन यहां से बिना रंगे हुए गुजरना नामुमकिन है।