दवा शुरू होने के 3 सप्ताह बाद गंभीर टीबी मरीज से भी नहीं फैलता है संक्रमण, छिपाने पर दर्जनों लोग हो सकते हैं संक्रमित
गोरखपुर। भेदभाव और कलंक की भावना (स्टिग्मा एंड डिस्क्रिमिनेशन) टीबी उन्मूलन के लिए बड़ी बाधा है। इसके कारण बीमारी को छिपाने वाले मरीज एक साल में 10 से 15 स्वस्थ लोगों को संक्रमित कर मरीज बना सकते हैं। इसके ठीक उलट, अगर टीबी मरीज की पहचान कर इलाज शुरू कर दिया जाए तो तीन सप्ताह बाद वह किसी स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकता है। यह जानकारी जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश यादव ने दी। जिले में 23 नवम्बर से शुरू हुए सक्रिय क्षय रोगी खोजी अभियान (एसीएफ कैम्पेन) के प्रचार वाहनों को कार्यवाहक सीएमओ और एसीएमओ आरसीएच डॉ एके चौधरी द्वारा हरी झंडी दिखा कर रवाना करने के बाद वह पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार के दिशा निर्देश पर जिले में नये टीबी मरीजों को खोजने के लिए पांच दिसम्बर तक यह अभियान चलेगा। जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि फेफड़े की टीबी का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसार खांसने और छींकने के दौरान निकलने वाले ड्रॉपलेट्स के जरिये होता है। सिर्फ फेफड़े की टीबी ही संक्रामक होती है। वैसे तो बाल और नाखून छोड़ कर शरीर के किसी भी अंग में टीबी हो सकती है, लेकिन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक टीबी का प्रसार फेफड़े के टीबी के मामलों में ही होता है। अगर समय से बीमारी की पहचान कर इलाज हो जाए तो यह टीबी भी तीन सप्ताह बाद संक्रामक नहीं रह जाती है। फेफड़े की टीबी भी दो प्रकार की होती है। फेफड़े की ड्रग सेंसिटिव टीबी (डीएसटीबी) का इलाज छह महीने में पूरा हो जाता है, जबकि ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (डीआर टीबी) के इलाज में डेढ़ से दो साल का समय लग सकता है। डीएसटीबी का मरीज जांच व इलाज न होने पर स्वस्थ लोगों को इसी बीमारी से ग्रसित करता है जबकि डीआर टीबी के मरीज से स्वस्थ व्यक्ति में डीआर टीबी का संक्रमण होता है। बताया कि एसीएफ अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम जिले की 20 फीसदी आबादी के बीच लक्षणों वाले संभावित टीबी मरीजों को खोज रही है। इन मरीजो का बलगम और एक्स रे जांचा जाएगा और जो नये मरीज निकल कर आएंगे उनको निक्षय पोर्टल पर पंजीकृत कर इलाज किया जाएगा। नये टीबी मरीज को इलाज चलने तक प्रति माह 500 रुपये पोषण के लिए उनके खाते में दिये जाएंगे। प्रत्येक टीबी मरीज की मधुमेह और एचआईवी जांच कराई जाती है। टीबी मरीजों के एचआईवी और मधुमेह ग्रसित होने की आशंका अधिक होती है। इसी प्रकार एचआईवी और मधुमेह ग्रसित व्यक्ति के टीबी मरीज होने की आशंका भी ज्यादा होती है। नये टीबी मरीजों की सीबीनॉट जांच करा कर पता लगाया जाता है कि वह डीआर टीबी के मरीज हैं या डीएसटीबी के। इसी आधार पर उनकी दवा शुरू की जाती है। जरूरतमंद टीबी मरीजों को निक्षय मित्रों को गोद दिलवाया जाता है ताकि उन्हें पोषण और मानसिक संबल मिल सके और वह इस बीमारी से मुक्त हो सकें। इस मौके पर उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव, जिला समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग आदि रहे।