शानदार कदम! अब मातृ-शिशु पोषण बनेगा पाठ्यक्रम और क्लिनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा, चार चिकित्सा संस्थान हुए तैयार
गोरखपुर। मातृ-शिशु पोषण को प्रदेश के उत्कृष्ट चिकित्सा संस्थानों के अंडर ग्रेजुएट छात्रों के पाठ्यक्रम व क्लिनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बनाने की तैयारी है। इस संबंध में अलाइव एंड थ्राइव संस्था के सहयोग से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर के अलग-अलग विभागों के 20 फैकल्टी प्रशिक्षित किये गये हैं। इन्हें चार चिकित्सा संस्थानों को प्रशिक्षण और तकनीकी जानकारी देने के लिए तैयार किया गया है। नई दिल्ली की यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन से जुड़ीं गाइनकलॉजिस्ट डॉ अनिता गुप्ता और इसी संस्था के डॉ. अमिर मारूफ खान ने फैकल्टीज को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण में बताया गया कि गर्भावस्था से लेकर एक हजार का शुरूआती दिन मातृ-शिशु के जीवन और पोषण स्तर के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस दौरान मां को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए और मां को आहार में बारम्बारता बढ़ानी चाहिए। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां का गाढ़ा पीला दूध दिया जाना चाहिए। छह महीने तक सिर्फ और सिर्फ मां का दूध दिया जाना चाहिए और छह महीने बाद दूध के साथ अर्धठोस पूरक आहार दिया जाना चाहिए। प्रशिक्षण में बताया गया कि इन मुख्य संदेशों और तकनीकी को किस प्रकार पाठ्यक्रम और क्लिनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। प्रशिक्षण से मिली जानकारी को एसएन मेडिकल कालेज आगरा, झांसी मेडिकल कालेज, अंबेडरकर नगर मेडिकल कालेज और एम्स रायबरेली के फैकल्टीज तक पहुंचाया जाएगा। कार्यशाला का शुभारंभ एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर ने गुरूवार को किया था और सभी फैकल्टी से अपेक्षा कि पोषण से संबंधित जानकारी का अपेक्षित सदुपयोग हो। कम्युनिटी एंड फैमिली मेडिसिन विभाग के हेड डॉ. हरिशंकर जोशी और एलाइव एंड थ्राइव संस्था के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक राजेंद्र ने भी प्रशिक्षण सत्रों को संबोधित किया। संस्था के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक ने बताया कि बिहार के कई चिकित्सा संस्थानों में मातृ-शिशु पोषण को पाठ्यक्रम एवं क्लिनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बनाया गया है। कार्यक्रम में विभिन्न विभागों से डॉ. प्रदीप खरैया, डॉ. अनिल कोपकर, डॉ. प्रीति प्रियदर्शिनी, डॉ. प्रीति बाला, डॉ. महिमा मित्तल आदि रहे।