पिता की पुण्यतिथि पर 2 टीबी रोगियों को गोद लेकर निक्षय मित्र बने अमित, माता-पिता की हर बरसी 2-2 मरीजों को गोद लेने का लिया संकल्प
गोरखपुर। स्थानीय बीआरडी मेडिकल कॉलेज में वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक अमित नारायण मिश्र ने पिता की चौथी पुण्यतिथि पर टीबी के 2 मरीजों को गोद लिया और पुनः निक्षय मित्र बन गये। इस दौरान उन्होंने संकल्प लिया कि वह प्रति वर्ष माता-पिता की पुण्यतिथि पर दो-दो टीबी मरीजों को गोद लेकर स्वस्थ होने में उनके मददगार बनेंगे। अमित ने इसी वर्ष फरवरी माह में मां की पुण्यतिथि पर दो टीबी मरीजों को गोद लिया था, जो पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। उनके द्वारा गोद लिये गये कुल चार टीबी मरीज अब तक टीबी मुक्त हो चुके हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने बताया कि कोई भी व्यक्ति या संस्था स्वेच्छा से निक्षय मित्र बन सकते हैं। निक्षय मित्र बनने के बाद गोद लिये गये टीबी मरीज को यथा सामर्थ्य पोषक सामग्री देनी होती है। समय-समय पर मरीज का फॉलो अप करना होता है ताकि बीच में दवा बंद न हो। टीबी मरीज की दवा बंद होने से जटिलताएं बढ़ जाती हैं और वह ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी मरीज बन सकता है, जिसका इलाज कठिन है। अगर निक्षय मित्र नियमित हालचाल लेते हैं तो टीबी मरीज का मनोबल बढ़ता है और समाज से उसके प्रति भेदभाव का भाव भी खत्म होता है। बेहतर कार्य करने वाले निक्षय मित्रों को स्वास्थ्य विभाग सम्मानित करता है। निक्षय मित्र अमित नारायण मिश्र ने बताया कि एक 72 वर्षीय टीबी मरीज उनके टीबी यूनिट से ही इलाज करवा रहे थे, जिनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब है। मरीज का परिवार उनके इलाज में बीआरडी मेडिकल कॉलेज आने से पहले ही लाखों रुपये कर्ज लेकर खर्च कर चुका था। मां की पुण्यतिथि पर उस मरीज को गोद लेकर उन्होंने खुद तो सहयोग किया ही, उसे सरकार की तरफ उपलब्ध कराई जाने वाली सभी सुविधाएं भी दिलवाईं। अब वह स्वस्थ हो चुका है। इससे काफी आत्मसंतोष मिला और पिता की पुण्यतिथि पर भी मरीज गोद लेने का निर्णय लिया। उनके पिता स्व. दिग्विजय नारायण मिश्र समाज के प्रति समर्पित थे और अमित का निक्षय मित्र बनना उनके पिता के लिए सबसे श्रेष्ठ श्रद्धांजलि है। गोद लिये गये 50 वर्षीय मरीज रामउग्रह (काल्पनिक नाम) चरगांवा ब्लॉक के एक गांव के रहने वाले हैं। उनका इलाज चार दिसम्बर को शुरू हुआ है। उन्होंने बताया कि एसटीएस ने उन्हें मूंगफली, गुड़, भुना चना, केला और सेब की पोटली बनाकर दिया और कहा कि इलाज के दौरान हरसंभव मदद करेंगे। ठंड से बचने के लिए कंबल भी दिया है। गुलरिहा बाजार की 40 वर्षीय टीबी मरीज रुबी (काल्पनिक नाम) ने बताया कि कंबल और पोषक सामग्री देते हुए एसटीएस ने बताया कि बीमारी का इलाज चलने तक प्रति माह 1000 रुपये की दर से पोषण के लिए सरकारी सहायता भी प्राप्त होगी। सीएमओ ने बताया कि अगर लगातार दो सप्ताह तक खांसी आए, शाम को पसीने के साथ बुखार हो, सांस फूल रही हो, सीने में दर्द हो या बलगम में खून आए तो टीबी की जांच अवश्य करवानी चाहिए। अगर समय से फेफड़े की टीबी (पल्मनरी टीबी) की पहचान कर इलाज शुरू कर दिया जाए तो उपचाराधीन मरीज से दूसरे लोगों के संक्रमित होने की आशंका भी कम हो जाती है। जिले में इस समय करीब 10 हजार टीबी मरीजों का उपचार चल रहा है।