बीजेपी ने गाजीपुर को चौंकाया, अब तक गुमनाम रहे पारसनाथ राय को बनाया गाजीपुर का प्रत्याशी, बसपा लगा सकती है डॉ. उमेश सिंह पर दांव
गाजीपुर। गाजीपुर लोकसभा में आखिरकार कयासों व अफवाहों का दौर खत्म करते हुए बीजेपी आलाकमान ने प्रत्याशियों की अपनी 10वीं सूची जारी करते हुए प्रत्याशी घोषित कर पूरे जिले को चौंका दिया है। आमतौर पर राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्री तक को चुनने में सस्पेंस रखते हुए हर किसी को चौंकाने वाली भाजपा ने गाजीपुर लोकसभा में ऐसे व्यक्ति को प्रत्याशी घोषित कर दिया है, जिनके नाम पर आज तक कभी चर्चा ही नहीं थी। भाजपा ने कार्यकर्ता रहे पारसनाथ राय को लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया है। उनके नाम की घोषणा होते ही भाजपा सहित सभी दलों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। क्योंकि जिले की अधिकांश जनता सहित पार्टी कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग भी अब तक पारसनाथ राय के नाम से अनभिज्ञ ही था। 2 जनवरी 1955 को स्व. उमाकांत राय के पुत्र के रूप में जन्मे जखनियां के सिखड़ी गांव निवासी पारसनाथ राय शुरू से ही आरएसएस से जुड़े थे और 1986 में संघ के जिला कार्यवाह सहित विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। इसके अलावा जंगीपुर के क्रय विक्रय समिति के अध्यक्ष के साथ ही पारस राय शबरी महिला महाविद्यालय सिखड़ी, पंडित मदनमोहन मालवीय इंटर कॉलेज व विद्या भारती विद्यालय के प्रबंधक हैं। वर्तमान में वो जौनपुर में सह विभाग संपर्क प्रमुख के दायित्व पर हैं और जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के भी बेहद करीबी माने जाते हैं। उनके कई लोकसभा चुनाव का संचालन भी पारसनाथ राय ने किया है। परास्नातक की शिक्षा ग्रहण करने वाले स्वभाव से सरल पारसनाथ राय अपने नाम के अनुरूप हैं। माना जा रहा है कि उनको टिकट मिलने में मनोज सिन्हा की काफी तगड़ी पैरवी है। दोपहर तक भाजपा के प्रत्याशी के नाम पर जिले में तमाम चर्चाएं चल रही थीं। कोई सुशील सिंह को प्रत्याशी बता रहा था तो कोई विनीत सिंह, राधेमोहन सिंह, संतोष यादव, विजय मिश्र आदि को प्रत्याशी साबित करने पर तुला था। वहीं दो दिनों से मनोज सिन्हा को डंके की चोट पर प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर किसी अखबार की कटिंग भी वायरल हो रही थी। जिसमें जम्मू कश्मीर के एलजी पद पर जनरल वीके सिंह को स्थापित कर मनोज सिन्हा को गाजीपुर से चुनाव लड़ाए जाने का दावा किया जा रहा था। इन सभी चर्चाओं पर दोपहर में तब पूर्णविराम लग गया, जब पार्टी ने 10वीं सूची जारी करते हुए पारसनाथ राय के नाम पर मुहर लगा दी। इस मुहर के साथ ही सभी राजनैतिक पंडितों के दावे भी गायब हो गए। हालांकि नाम की घोषणा के साथ ही समर्थकों सहित पार्टी कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग में विरोध के सुर फूटने लगे। आम जनता का कहना था कि सपा के अफजाल अंसारी जैसे कद्दावर नेता के सामने किसी ऐसे व्यक्ति को खड़ा करना चाहिए था, जो उनका समीकरण ध्वस्त कर सके। जबकि वर्तमान दौर ये है कि मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अफजाल अंसारी को लोकसभा के दो काफी बड़े वर्ग की सहानुभूति मिल रही है। हालांकि वो दोनों वर्ग सपा के ही बेस वोटर हैं। इसके अलावा इंडी गठबंधन के चलते कांग्रेस का कोर वोट भी अफजाल अंसारी को ही जाने की संभावना है। ऐसे में राजनैतिक पंडितों का कहना था अफजाल के इस चक्रव्यूह को भेदने के लिए कोई ठोस अभिमन्यु की जरूरत थी लेकिन भाजपा ने पूरे जिले को चौंकाते हुए ऐसा फैसला लिया है, जो एक बड़े वर्ग को नहीं पच रहा है। ऐसे में अब आगे क्या होगा, ये देखना है। वहीं अब बसपा के सामने अफजाल व पारसनाथ के सामने बेहद मजबूत प्रत्याशी को सामने लाने की चुनौती आ गई है। संभावना जताई जा रही है बसपा लोकसभा को क्षत्रिय उम्मीदवार दे सकती है। जिसके तहत गाजीपुर से बसपा से दावेदारों के रूप में मुड़ियार निवासी क्षत्रिय समुदाय से आने वाले डॉ. उमेश कुमार सिंह का नाम काफी तेजी व मजबूती से सामने आ रहा है। करीब 53 साल उम्र के डॉ. सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ से राजनीति शुरू की और छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री भी रह चुके हैं। इसके बाद 2014 में अरविंद केजरीवाल को वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ाने में डॉ. सिंह की अहम भूमिका रही है। वो केजरीवाल की टीम के साथ 5 सालों तक काम कर चुके हैं। उन पर देश व प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं का भी हाथ रहा है। मजबूत व्यक्तिगत राजनैतिक पृष्ठभूमि व बेदाग छवि के उक्त व्यक्ति के चुनावी रण में उनके उतरने पर जिले में राजनैतिक समीकरण पूरी तरह से बदल भी सकता है। ऐसे में अब बसपा द्वारा अपने पत्ते खोलने का इंतजार है। माना जा रहा है कि 16 अप्रैल से पहले बसपा अपना प्रत्याशी घोषित कर सकती है।