महाभारत काल से चला आ रहा जीवित्पुत्रिका का कठिन त्योहार, पढ़ें व्रत के शुरूआत की पूरी कहानी





देवकली। आस-पास के क्षेत्रों में जीवित्पुत्रिका व्रत धूमधाम के साथ परम्परागत ढंग से मनाया गया। इस दौरान निर्जला रहकर महिलायें अपने पुत्रों के दीर्घायु होने की कामना के लिए कोरोना के चलते घर-घर पूजन, अर्चन किया तथा कथा सुनी गई। ये व्रत सबसे कठिन माना जाता है। मान्यता है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने अर्जुन के पुत्रवधू उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्णभक्त थीं, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी (मां लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु के रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढंक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र को पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने हेतु ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवित कर दिया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका व इसे त्योहार के रूप में मनाया गया। पांडवों और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की। प्रसन्न होने पर उत्तरा ने कहा कि माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया कि इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें। तभी ये व्रत चला आ रहा है। इस दौरान व्रत करने वालों में लक्ष्मी मौर्या, निशा मौर्या, रामा, सुनीता, प्रमिला, राधा आदि रहीं।



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